चाणक्य के ये पांच वाक्य हर किसी को ज़रूर अपनाने चाहिए
चाणक्य का नाम हम भारत वासियों के लिए नया नहीं है. इनका बुद्धि, राजनीति और चालाकी में कोई भी प्रतिद्वंदी नहीं था. इनके किस्से दूर दूर तक मशहूर थे. ये अपने राजा को किसी भी समस्या की ऐसी युक्ति देते थे की विरोधी चारो खाने चित्त हो जाते थे. उनकी लिखी हुई किताब चाणक्य नीति बहुत ही मशहूर है. इसमें चाणक्य जी खुद कहते हैं की "मैं लोगों की भलाई की इच्छा से (राजनीति के ) ग़ूढ रहस्यों से पर्दा उठा रहा हूँ, जिन्हे जान लेनें मात्र से मनुष्य सर्वज्ञ हो जाता है अर्थात और कुछ जानना उसके लिए शेष नहीं रह जाता".
दोस्तों, हम भी अपने जीवन के लिए चाणक्य से बहुत कुछ सीख सकते हैं. चाणक्य नीति से बहुत कुछ अपने जीवन के लिए भी सीखा जा सकता है. आप इनकी किताब को एक बार तो ज़रूर पढियेगा. इससे आपको अपने करियर के लिए तो बहुत कुछ सीखने को मिलेगा ही, और रिश्ते नाते, मित्रता इत्यादि की समझ आपको ज़रूर मिलेगी।
यहाँ मैं आपके लिए चाणक्य नीति से पांच जीवन बदल देने वाले वाक्य समझाने वाला हूँ. दोस्तों अगर आप इन्हे समझेंगे तो पक्का ही आपको अपने जीवन के बारे में एक नया नजरिया मिलेगा और आपकी सोच को एक नया आयाम भी मिलेगा।
1. दुष्ट व्यक्ति और साँप, इन दोनों में से किसी एक चीज़ को चुनना हो तो दुष्ट व्यक्ति की अपेक्षा सांप को चुनना ठीक होगा, सांप समय आने पर ही काटेगा, जबकि दुष्ट व्यक्ति हर समय हानि पहुंचाता रहेगा।
दोस्तों, चाणक्य यहाँ समझाते हैं की दुष्ट व्यक्ति सांप से भी ज्यादा हानिकारक होता है. सांप तो केवल अपनी रक्षा के लिए काटता जबकि दुष्ट व्यक्ति हमेशा आपको किसी न किसी तरह हानि पहुँचता रहेगा। इस प्रकार दुष्ट व्यक्ति सांप से भी ज्यादा खतरनाक होता है. अच्छा तो रहेगा की आप ऐसे लोगों को पहचान कर इनसे दूर ही रहे. अच्छी संगत में रहे और सबसे अच्छा बर्ताव करें.
बुरे व्यक्ति से टकराना ठीक वैसा ही है जैसे की आप किसी फल को चाक़ू में मारते हो तो चाक़ू का कभी कुछ नहीं होता लेकिन फल हमेशा कट जाता है. दुष्ट लोगों को बदल पाना भी काफी कठिन होता है, तो ऐसे लोगों से मित्रता कभी भी न करें.
2. "मूर्ख व्यक्ति से दूर ही रहना चाहिए क्यूंकि मनुष्य दिखता हुआ भी वह दो पैरों वाले पशु के सामान है. वह सज्जनों को उसी प्रकार कष्ट पहुंचाता है जैसे शरीर में चुभा हुआ काँटा शरीर को निरंतर पीड़ा देता रहता है."
दोस्तों, चाणक्य यहाँ बताते हैं की काँटा छोटा होने के कारण अदृश्य हो जाता है और शरीर में धंस जाता है. मूर्ख व्यक्ति की भी यही स्थिति है. वह भी अनजाने में दुःख और पीड़ा का कारण बनता है. अक्सर लोग मूर्ख की ओर भी ध्यान नहीं देते हैं. वे उसे मामूली मनुष्य ही समझते हैं.
दोस्तों, मूर्ख व्यक्ति से किसी भी विषय पर वाद-विवाद करने से बचें, मूर्ख आपको अपने स्तर तक गिरा लेगा और फिर उसमे और आपमें कोई अंतर नहीं रह जाएगा. ऐसे व्यक्ति की सही और गलत में अंतर पहचानने की क्षमता खत्म हो जाती है.
किसी भी स्थिति में ऐसे लोगों को अपना कोई भेद नहीं बताना चाहिए और न ही कोई आर्थिक लेन देन करना चाहिए. इससे आपको ही नुक्सान हो सकता है. इसलिए खुद को और अपने परिवार को ऐसे लोगों से दूर की रखना चाहिए.
3."एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वाभाव वाला हो तो, उससे परिवार को उसी प्रकार ख़ुशी होती है जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है"
चाणक्य के अनुसार, यह आवश्यक नहीं है की परिवार में बहुत सी संताने हों, तो वह परिवार सुखी ही हो. अनेक संतों के होने पर भी यदि उनमे से कोई विद्वान और सदाचारी नहीं हो तो परिवार के सुखी होने का प्रश्न ही नहीं उठता। इसलिए चाणक्य कहते हैं की बहुत से मूर्ख पुत्रों और संतान की अपेक्षा एक ही विद्वान् और सदाचारी पुत्र से परिवार को उस प्रकार प्रसन्नता मिलती है जैसी चाँद के निकलने पर उसके प्रकाश से काली रात जगमगा उठती है.
दोस्तों, कभी भी एक संतान होने का दुःख नहीं मानना चाहिए। सौ बुरी और सेवा न कर पाने वाली संतान सें अच्छी तो एक वो संतान है जो आपका नाम रौशन तो करती ही है तथा आपकी सेवा भी अच्छे से करती है. ऐसी संतान से घर में हमेशा अच्छा माहौल रहता है और घर में खुशियों का बसेरा रहता है.
4."विद्या की प्राप्ति निरंतर अभ्यास से होती है, अभ्यास से ही विद्या फलवती होती है, उत्तम गुण और स्वभाव से ही कुल का गौरव और यश स्थिर रहता है. श्रेष्ठ पुरुष की पहचान सदगुणों से होती है. मनुष्य की आँखें देख कर क्रोध का ज्ञान हो जाता है"
इस वाक्य में चाणक्य समझाते हैं की, जिन व्यक्तियों को उत्तम शिक्षा प्राप्त करनी है वे निरंतर प्रयत्न करते हैं. वे यदि बार बार अभ्यास न करें तो विषय की प्राप्ति असंभव होती है. यदि कुल का स्थिर होना, उसका यश फैलना, उसका प्रसिद्ध होना, गौरव की दृष्टि से देखा जाना आदि उसके उत्तम गुण, अच्छे स्वभाव के कारण ही होता है. यदि गुण कर्म और स्वभाव श्रेष्ठ नहीं होंगे तो कुल का गौरव नहीं बढ़ सकता। ठीक इसी प्रकार श्रेष्ठ पहचान उसके अच्छे गुणों के कारण होती है. किसी व्यक्ति के क्रोधित होने का ज्ञान उसकी आँखे देख कर हो जाता है, क्यूंकि क्रोध के कारण व्यक्ति की आँखे लाल हो जाती हैं.
क्रोध को लेकर अपने भारत में एक कहावत है की "विनाश काले विपरीत बुद्धि". तो क्रोध करने वाले व्यक्ति से दूर रहना चाहिए क्यूंकि वो अपने क्रोध से अपना नाश तो करेगा ही साथ में आपका भी नुक्सान करेगा. इसलिए हमें श्रेष्ठ बनना चाहिए और अच्छी शिक्षा लेनी चाहिए।
5."आलस्य के कारण विद्या नष्ट हो जाती है, दूसरे के हाँथ में गयी हुई स्त्रियां नष्ट हो जाती हैं, कम बीज डालने से खेत बेकार हो जाता है, और सेनापति के मारे जाने पर सेना नष्ट हो जाती है."
इस वाक्य में चाणक्य समझाते हैं की विद्या की प्राप्ति और इसकी वृद्धि के लिए व्यक्ति को आलस्य का त्याग कर देना चाहिए। आलसी किसी भी कुल को प्राप्त नहीं कर सकता। दूसरे के पास जाने वाली स्त्री का धर्म नष्ट हो जाता है अर्थात किसी दूसरे के अधिकार में जाने पर स्त्री का सतीत्व कायम नहीं रह पाता। यदि खेत में बीज बोते समय कंजूसी की जायेगी, और बीज काम डाला जाएगा तो अच्छी फसल नहीं हो सकेगी। सेना का बल सेनापति से ही स्थिर रहता है. जब सेना पति मारा जाता है तो सेना का हार जाना स्वाभाविक ही है.
आलस्य मनुस्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है. आलसी मनुष्य हर जगह से दुत्कार कर भगाया जाता है तथा वो कही भी सम्मान का पात्र नहीं होता है. इसलिए मनुषय को आलस्य त्याग कर कर्म करना चाहिए। हमें विशेष रूप से अपने बच्चो को आलस्य के अवगुण समझाने चाहिए.
तो साथियों, ऊपर दिए पांच वाक्य बहुत ही लाभकारी हैं. इनसे मिली शिक्षा को हर इंसान को अपनाना चाहिए।जीवन में आगे बढ़ने के लिए ये पांचों बाते बहुत ही उपयोगी है.
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Super....!
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